कृष्ण – मेरा अस्तित्व
कृष्ण इस नाम को जानना इस नाम से परिचित होना अपने आप में एक आत्मीय आनंद की बात है। कृष्ण नाम मुख पर आते ही एक मोहक छवि आंखों में उभर आती है….सिर पर मोर मुकुट ,पीताम्बर ओढ़े ,अधरों पर मुरली और मीठी मुस्कान; उस पर श्यामल रंग अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी… ना कोई हुआ ना कोई होगा ….. भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था…..”एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति!”
अर्थात् एक मैं ही हूं दूसरा सब मिथ्या है। न मेरे जैसा कभी कोई आया न आ सकेगा।
इस नाम को परिभाषित किया जाये तो कृष्ण का अर्थ है आकर्षित करना, दूसरे अर्थ में कृष्ण का अर्थ विश्व का प्राण, उसकी आत्मा और कृष्ण तो हर आत्मा में बसते हैं और जो इस रसतत्व को समझ गया उसने आनंद को प्राप्त कर लिया और जिसने आनंद को प्राप्त कर लिया उसने कृष्ण से साक्षात्कार कर लिया मेरा होना ही कृष्ण है अर्थात कृष्ण है तो मैं हूं मेरा अस्तित्व ही कृष्ण है ।
भगवद्गीता में कृष्ण ने कहा हैं…ये यथा मां प्रपद्यन्ते 4(11)- जो कुछ भी हम स्पर्श करते हैं, जो भी हम इस विश्व में देखते हैं- वह सब कुछ कृष्ण का ही है। अर्थात संपूर्ण जगत में कृष्ण है अपितु समस्त कृष्ण में समाया है और ब्रम्हांड में कृष्ण समाया है और इस लीला से कृष्ण ने यशोदा मैय्या को बाल्यावस्था में ही खेल -खेल में ही अपने मुख को खोलकर संपूर्ण ब्रह्मांड के दर्शन कर दे दिया था । जैसा विचित्र नाम वैसे ही निराले इनके खेल इनकी लीलाएं…. कालिया मर्दन की कहानी हर बच्चा- बच्चा जानता है… पूतना, बकासुर, जैसे राक्षसों का भी उद्धार कर दिया…. अर्थात उनकी शरण में जो भी आ जाये और उसके ह्रदय से निरंतर कृष्ण नाम निकलता रहे चाहे किसी भी उद्देश्य से किया जाये नाद अंतर से होना चाहिए,उसे वे अपने अंदर समाहित कर लेते हैं।
उनके व्यक्तित्व का एक रंग ये भी है उन्होने अपने जीवन में घटित होने वाले हर एक वस्तु व परिस्थितियों को सहजता से स्वीकार किया है जैसे – वृंदावन से मथुरा , मथुरा से द्वारिका। ऐसे ही उन्हें मिलने वाली विचित्र नामों की उपाधियों को भी स्वीकृति दी… किसी ने छलिया रणछोड़, चितचोर, माखनचोर ,रासबिहारी गोपी वल्लभ ऐसे जाने कितने नाम है जिसे उन्होंने ने सहृदय शिरोधार्य किया है। कृष्ण ने प्रेम को सर्वोपरि रखा है चाहे वह मां यशोदा का वात्सल्य हो या राधा से अनन्य प्रेम हो या गोपियों से, कुब्जा हो या फिर सत्यभामा, मीरा हो या फिर कर्मा बाई कृष्ण ने सभी के प्रेम को स्वीकार किया है । ऐसे अद्भुत व्यक्तित्व के परिचायक कृष्ण के विभिन्न गुणों को हम आत्मसात करें और जीवन में अपनाएं।
कृष्णार्पण |
-रूचि (रूचि)
नाम -रूचिता चावड़ा
दूर्ग- छत्तीसगढ़
साहित्यकार परिचयः
मेरा नाम है…रुचिता चावड़ा, उपनाम “रूचि”। मैं एक ब्लॉगर के रूप में भी लिखती हूं। मैं दुर्ग, छत्तीसगढ़ की रहने वाली हूं। यहां मेरी अपनी एक छोटी सी दुकान है। मेरे अंदर एक छोटा साहित्यकार छीपा है और साथ ही मुझे ड्राइंग का भी शौक है। मैं 2021 से एक साहित्यिक समूह साहित्य संगीत विश्व से जुडी हूं और मेरी कुछ रचनाएं राजुल बेन शाह और कौशिक भाई शाह के माध्यम से उस समूह के एडमिन को भेजी गई हैं जयहिन्द, जन फरियाद, एकलवीर साप्ताहिक परिशिष्ट में भी छपा है ।
मेरी पसंदीदा पुस्तक “श्रीमद्भागवत गीता” है, मैं कृष्णा (दीप त्रिवेदी) कृष्णायन (काजल ओझा) जेएसके (जय वसावडा) नवागंतुक लेखक मीत जोशी की “पूर्ण पुरूषोत्तम कृष्ण” है। मुझे गद्य पसंद है, मुझे पद्य में लिखना पसंद है और चित्र पर लिखना भी पसंद है…. बस इतना ही मेरा परिचय है।
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जय श्री कृष्ण
- गोपाल खेताणी