कृष्ण !! वैसे तो मधुसूदन के कितने सारे नाम है, परंतु “कृष्ण” इस नाम का प्रभाव कुछ अलग ही है। इस नाम को बोलने के साथ मन में एक अलग ही ऊर्जा उत्पन्न होती है, क्योंकि अन्य सभी नामों के साथ असंख्य लोग जुड़ें हुए हैं परंतु कृष्ण, “कृष्ण” नाम भाग्य से ही किसी का देखने और सुनने को मिलेगा।
हां कृष्ण का अपभ्रंश या उसका हिंदी नाम जैसे क्रिष्ना या किशन ऐसे नाम बहुत से लोगों के होंगे, परंतु कृष्ण नाम मैंने अभी तक नहीं देखा। मानो कृष्ण नाम तो उनके लिए ही सर्जन किया गया हो ऐसा प्रतीत होता है। हां, रामकृष्ण नाम भी जरुर होगा परंतु कृष्ण, यह तो सिर्फ वृंदावन के गोपाल का या द्वारिका के राजाधिराज का ही हो सकता है और आज के समय में कोई मनुष्य ऐसा नहीं जिसे पूर्ण पुरूषोत्तम कहा जा सके।
पूर्ण अर्थात पूरा का पूरा जिसमें सभी गुण हो, जिससे ये दुनिया या समाज में मनुष्य जीवित रह सके और इस पूर्णता में अच्छे और बूरे दोनों गुणों का समावेश हो सके।जब आपको अपनी बूरी आदतों को बताने की जरूरत पड़े तो वह भी बिना हिचकिचाहट के बताना यह सीखना हो तो कृष्ण से उत्तम कोई उदाहरण नहीं, परंतु इसकी भी पहली शर्त यह है कि इसके पीछे आपका अपना स्वार्थ निहित नहीं होना चाहिए।
कहने का तात्पर्य यह है कि जब आपको बांसुरी बजाने की जरूरत हो तब बांसुरी बजा लीजिए; परंतु इसका मतलब यह नहीं कि हर बार समस्या का समाधान बांसुरी बजाकर ही किया जाय अपितु जब यह लगे कि यहां बांसुरी से काम नहीं होगा तब उसी जोश और ऊर्जा से सुदर्शन चक्र भी निकाल लेना चाहिए, उस पर भी ज्यादा विचार ना करें। ऐसे ही विरोधाभास गुणों के कारण कृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम कहलाए।
अगर उनके अंदर सारे अच्छे गुण होते तो उन्हें पूर्ण नहीं संपूर्ण कहना पड़ता, संपूर्ण अर्थात अच्छी तरह भरा हुआ, संपूर्ण अर्थात जिसमें सारे अच्छे गुण हों, परंतु कृष्ण संपूर्ण नहीं पूर्ण हैं और जो पूर्ण हैं वही इस संसार में जीवित रह सकता है, सांसे ले सकता है और यह बात अगर किसी ने समझाई हैं तो वह कृष्ण हैं और यह बात उनके नाम से परिभाषित होती है। कृष्ण, यह नाम इतना विचित्र है कि पहले यह नाम समझ आ जाए तभी उनका व्यक्तित्व समझ सकते हैं। इसलिए कृष्ण को समझना हो तो पहले उनके नाम को समझना पड़ेगा।
जैसे की इस नाम में कितने अक्षर हैं यह कोई नहीं कह सकता और कहेगा तो सबका अपना- अपना नजरिया अलग-अलग ही होगा । कोई कहेगा दो अक्षर है तो कोई कहेगा ढाई अक्षर है, तो कोई कहेगा तीन अक्षर है, जैसी जिसकी दृष्टि उसको उतना ही दिखाई देगा। कृष्ण का व्यक्तित्व भी ऐसा ही है जिसमें जितनी योग्यता होगी उसे कृष्ण उतने ही समझ आएंगे और यही कारण है की सभी लोग आपकी सुनेंगे, आपकी ओर ध्यान देंगे, क्योंकि यदि आप सरल बन गए और सभी को पूरी तरह समझ आ गये तो आपकी क़दर नहीं होगी। अर्थात व्यक्ति को अपना आत्मसम्मान बनाए रखना हो तो थोड़ा अप्रत्याशित बनना ही पड़ेगा और इसके लिए कृष्ण से अच्छा गुरु कोई हो ही नहीं सकता।
बस कृष्ण के लिए मेरा यह दृष्टिकोण उन्हीं के चरणों में कृष्णार्पण कर रहा हूं। कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।
- मीत जोशी
प्रस्तुत रचना हमारे परम मित्र एवम् लेखक श्री मीत जोशी की है। गुजराती साहित्य में उन्होंने बहुत सारे लेख, कहानी, कविताएं लिखी हैं। भगवान श्री कृष्ण की प्रति उनका लगाव उतना है की उन्होंने गुजराती में “पूर्ण पुरुषोत्तम कृष्ण” नाम की किताब लिखी है जो बेस्ट सेलर बनी हैं। पुस्तक आप नीचे दी गई लिंक पर जाकर खरीद सकते हैं।
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उनका Author Interview भी आप नीचे दी गई लिंक पर जाकर youtube पर देख सकते हैं।
- गोपाल खेताणी