हम इस धरा को माता मानते है। किसान हल चलाने से पहेले खेत की, धरा की पूजा करते है। बिल्डर नइ इमारत बनाने से पहले भूमी पूजन करते है। अरे यहां तक की उद्योगपति भी नया युनिट लगाने से पहले भी धरती मा का पूजन करते है।
पानी / बोरवेल > पानी के लिए इतने सारे बोरवेल हम बना रहे है वो भी तो धरा पे अत्याचार ही है।
क्या किया जाये।
– जितना हो सके उतना >> पैड लगाए, पौधे लगाए। पेड पौधे हवा को तो स्वच्छ करेंग़े ही पर जल स्त्रोत भी बढाएंगे और रेगिस्तान को रोकने के लिए भी ये एक मात्र उपाय है।
– औद्योगीक विकास जरुरी है पर जो भी औद्योगीक कचरा निकल रहा है उसके निकाल का सही / मान्य तरिका अपनाएं।
– जल स्त्रोत को प्र्दूषित ना करे।
– रेत और खनिज के इलिगल खनन को रोके।
– हम सभी की प्राथमिक जरूरत अन्न है। क्रीषि की जमीन का औद्योगीकी करण बंध करे। नजदीकी फायदे में हम दूर का घाटा नहीं देख पा रहे।
– पानी के बिना हम रह नहीं सकते। पानी को जितना हो सके उतना बचाये।
यस्यां समुद्र उत सिन्धुरापो यस्यामन्नं कृष्टयः संबभूवुः ।
यस्यामिदं जिन्वति प्राणदेजत्सा नो भूमिः पूर्वपेये दधातु ॥
समुद्र एवम नदियों का जल जिसकी गोद में बह रहा है, जिस पर खेती करने से अन्न प्राप्त होता है, जिस पर सभी जीवन जीवित है, ऐसी माता पृथ्वी हमें जीवन का अमृत प्रदान करे।
साभार – भूमी सूक्तम
~ गोपाल खेताणी