Chandrashekhar Azad
‘दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे।’ – चंद्रशेखर आजाद।आज उस महान सेनानी की जन्म जयंती है जिन्होंने महज १५ साल की उमर में काशी में पकड़े जाने के बाद मजिस्ट्रेट खरेघाट पारसी के सामने पेश किए जाने पर सीना तान कर अपना परिचय दीया;
नाम- आजाद, माता- का नाम धरती, पिता का नाम- स्वतंत्रता और पता जेल।
नाम- आजाद, माता- का नाम धरती, पिता का नाम- स्वतंत्रता और पता जेल।
महज 12 साल की उम्र में संस्कृत का विद्वान बनने के लिए काशी आए चंद्रशेखर तिवारी क्रांतिकारी बन गए और देश का परिचय हुआ आजाद से, चंद्रशेखर आजाद से! चंद्रशेखर को काशी के ज्ञानवापी में आजाद नाम मिला था, जब वे शिवपुर की सेंट्रल जेल से छूटकर आए थे।
युवा होने पर आजाद ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी’ से जुड़े।रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) में सक्रिय भाग लिया और पुलिस की आंखों में धूल झोंककर फरार हो गए।17 दिसंबर, 1928 को चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने शाम के समय लाहौर में पुलिस अधीक्षक के दफ्तर को घेर लिया और ज्यों ही जे.पी. साण्डर्स अपने अंगरक्षक के साथ मोटर साइकिल पर बैठकर निकले तो राजगुरु ने पहली गोली दाग दी, जो साण्डर्स के माथे पर लग गई वह मोटरसाइकिल से नीचे गिर पड़ा।
फिर भगत सिंह ने आगे बढ़कर 4-6 गोलियां दाग कर उसे बिल्कुल ठंडा कर दिया। जब साण्डर्स के अंगरक्षक ने उनका पीछा किया, तो चंद्रशेखर आजाद ने अपनी गोली से उसे भी समाप्त कर दिया।इतना ना ही नहीं लाहौर में जगह-जगह परचे चिपका दिए गए, जिन पर लिखा था- लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है। उनके इस कदम को समस्त भारत के क्रांतिकारियों खूब सराहा गया।साण्डर्स–वध और दिल्ली एसेम्बली बम काण्ड में फाँसी की सजा पाये तीन अभियुक्तों– भगत सिंह, राजगुरुवसुखदेवने अपील करने से साफ मना कर ही दिया था।
अन्य सजायाफ्ता अभियुक्तों में से सिर्फ ३ ने ही प्रिवी कौन्सिल में अपील की। ११ फ़रवरी १९३१ कोलन्दनकी प्रिवी कौन्सिल में अपील की सुनवाई हुई। इन अभियुक्तों की ओर से एडवोकेट प्रिन्ट ने बहस की अनुमति माँगी थी किन्तु उन्हें अनुमति नहीं मिली और बहस सुने बिना ही अपील खारिज कर दी गयी।चन्द्रशेखरआज़ादने मृत्यु दण्ड पाये तीनों प्रमुख क्रान्तिकारियों की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया।
२० फरवरी को जवाहरलाल नेहरूसे उनके निवासआनन्द भवनमें भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वेगांधी जीपर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र– कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें! अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे–पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी में आजाद को वीरगति प्राप्त हुई। यह दुखद घटना २७ फ़रवरी १९३१ के दिन घटित हुई और हमेशा के लिये इतिहास में दर्ज हो गयी।
पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दियेचन्द्रशेखर आज़ादका अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी साराइलाहाबादअलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द–गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। समूचेशहरमें आजाद के बलिदान की खबर से जबरदस्त तनाव हो गया। शाम होते–होते सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले होने लगे। लोग सडकों पर आ गये थे।
चंद्रशेखर आजाद (पंडीतजी) भारत माता के वीर सपूत थे, वीर सपूत हैं और देश भक्तों के दील में आगे भी जींदा रहेंगे। उनकी जन्म जयंती पर शत शत नमन।