पुस्तकः तोत्तो – चान
लेखक: तेत्सुको कुरोयानागी
हर किसी के मन में अपने स्कूल की यादें होंगी। मौज-मस्ती की होगी, नई-नई चीजें सीखी होंगी, शरारतें की होंगी। किताब “तोत्तो चान” कुछ ऐसी ही दिखती है; जो आपको यादों के सागर में गोते लगाने पर मजबूर कर देगी। लेकिन इस पुस्तक का स्कूल दुनिया के सभी स्कूलों से बिल्कुल अलग है। कैसे? तो इस पुस्तक परिचय को पढ़ें!
मैंने कुछ दिनों पहले जापान की बेस्टसेलर पुस्तक “तोत्तो चान” पढ़ी। यह किताब 1981 में प्रकाशित हुई और बेस्टसेलर बन गई। इसका दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
यह किताब ऐसी है कि इसे पढ़ने में बच्चों को भी मजा आएगा, युवाओं को भी पढ़ने में मजा आएगा और वरिष्ठ नागरिकों को भी पढ़ने में मजा आएगा।
तेत्सुको कुरोयानागी का जन्म 1933 में टोक्यो, जापान में हुआ था। वह एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध टीवी कलाकार, अभिनेत्री, ओपेरा कलाकार हैं और उन्हें यूनिसेफ में जापान की सद्भावना राजदूत के रूप में भी जाना जाता है।
तेत्सुको, जिसे बचपन में तोत्तो-चान के नाम से जाना जाता था, अपने स्कूल “तोमोए” के संस्मरण प्रस्तुत करती है, जिसके प्रिंसिपल सोसाकु कोबायाशी थे।
यह विद्यालय अन्य विद्यालयों से भिन्न लय में चलता था। यहां रेलवे के डिब्बों में बच्चों को पढ़ाया जाता था। इसे देखकर बच्चे रोमांचित हो उठते। जब क्लास शुरू हो तो उन्हें पूरे दिन का टाइम टेबल दिया जाता कि आज आपको यह विषय पढ़ने हैं। लेकिन हर बच्चा अपने तरीके से तय करता है कि उसे कौन सा विषय पहले पढ़ना है और कौन सा विषय बाद में।
इस तरह बच्चा उस विषय में आगे बढ़ सकता है जिसमें उसकी रुचि अधिक है।
साथ ही यहां पाठ्येतर गतिविधियों पर भी अधिक जोर दिया गया। बच्चों को प्रकृति के करीब रखने के लिए उन्हें खेतों, पहाड़ियों और द्वीपों पर घूमने ले जाते। प्रत्येक बच्चे को स्कूल परिसर में लगे अनेक पेड़ों में से एक पैड चुनने का अधिकार दिया जाता ताकि वह पेड़ के साथ दोस्ती कर सके। जब भी विद्यालयमें पाठ्येत्तर प्रव्रुत्ति होती तब अभिभावकों को सूचित किया जाता कि वे बच्चों को पुराने कपड़े पहनाकर भेजें ताकि कपड़े गंदे होने पर कोई फर्क न पड़े।
हर बच्चे को हमेशा प्रोत्साहित किया जाता। तोत्तो चान बहुत खुश होती थी जब उनके प्रिंसिपल उससे हमेशा कहते कि “तुम बहुत अच्छी लड़की हो”। यह बाते तेत्सुको को जीवन भर याद रहती है और शायद यही कारण है कि वह आत्मविश्वास से इतनी भरी हुई है। ऐसे अनेक उदाहरण इस पुस्तक में स्वाभाविक रूप से प्रस्तुत किये गये हैं।
साथ ही इस विद्यालय में एक नया विषय यू-रिदमिक्स भी पढ़ाया जाने लगा।
कोबायाशी ने यू-रिदमिक्स सीखते हुए तोमोए में अपना स्कूल शुरू किया, एमिल जैक्स डेलक्रोस नामक स्विस संगीतकार द्वारा आविष्कृत लयबद्ध अभ्यास। लयबद्ध अभ्यास का पहला लक्ष्य शरीर और दिमाग को लय के प्रति जागरूक बनाना था और इस तरह शरीर और दिमाग के बीच सामंजस्य बनाना था।
स्कूल का मूल उद्देश्य कल्पना को उत्तेजित करके रचनात्मकता का विकास करना था।
यहां बच्चों की डाइट पर भी ध्यान दिया जाता है और वो भी खास तरीके से। जब भी लंच ब्रेक आता है तो प्रिंसिपल सभी कक्षाओं में जाते हैं और पूछते हैं, “क्या आप समुद्र से कुछ लाए हैं, पहाड़ से कुछ?” (Sea Food & Vegetables) इसे सुनकर बच्चों को आनंद आता।
जापान समुद्र से घिरा हुआ देश है इसलिए वहां समुद्री भोजन लोकप्रिय है। समुद्र से मतलब समुद्री भोजन और पहाड़ से मतलब सब्जियां, अनाज, चावल और नॉनवेज आहार। बालकों को खेल-खेल में संतुलित आहार से परिचित कराया गया।
तोमोए स्कूल 1937 में शुरू हुआ और 1945 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान नष्ट हो गया। मात्र आठ साल की अवधि में भी तोमोए स्कूल ने एक अलग ही काम किया।
प्रिंसिपल सोसाकू कोबायाशी कहते हैं,
आंखें जो सुंदरता नहीं रही;
कान जो संगीत नहीं सुन रहे;
दिमाग तो है लेकिन उस पर सच्चाई नहीं चमकती;
अगर दिल है लेकिन भावना का अनुभव नहीं कर रहा… तो ये चिंता की बात है।
और इसीलिए उन्होंने ऐसी शिक्षण पद्धति विकसित की।
पूरी किताब तोत्तो चान की आत्मकथा की तरह है लेकिन उनके स्कूल के दिनों (सिर्फ दूसरी-तीसरी कक्षा तक) की बाल सहज घटनाओं, शरारतों और निजी जिंदगी पर आधारित है, जिसका आपको भरपूर आनंद आएगा।
~गोपाल खेतानी