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इंजीनियरींग, टेक्नीकल नॉलेज और जोब!

आज का युग चेलेन्जींग है। हर रोज कुछ न कुछ इनोवेशन हो रहा है। कल के बच्चे जो चंदामामा को देख रहे थे वे आज उनेके चेहरे के पीछे क्या है (डार्क साइड ओफ ध मून!) वो देखने लेन्डर को उनके पास भेज रहे है। कहने का मतलब ये है की हर जगह कुछ न कुछ नई संभावनाऍ देखी जा रही है।पर पढाइ में कुछ नया पन आ रहा है? मैं कुछ पोइन्टस आप के सामने पेश करुंगा पर इससे पहले कुछ युवा इंजीनियर्स जो अभी अभी एम्पलोइ (फ़्रेशर्स) बने हैं उनके अनुभव पढते हैं।

मम्मी जल्दी खाना दो मेरी पहली क्लास केमिस्ट्री की है, अगर लेट हो गयी तो सर क्लास में आने नहीं देंगे! तभी मम्मी की आवाज़ आई, जल्दी उठ जा आज ऑफिस नहीं जाना क्या! और ये लो केमिस्ट्री की क्लास छूट गयी! एक और कॉलेज का सपना टूट गया! जब से कॉलेज ख़त्म हुआ है तब से मेरी सुबह कुछ ऐसे ही होती है। वैसे तो ऑफिस में सभी लोग बहुत अच्छे हैं पर कॉलेज की भी अपनी ही बात थी। अगर काम की बात की जाए तो यहाँ आने के बाद पता चला कि हम जो कुछ भी कॉलेज में पढ़ कर आए थे ज़माना उससे कई गुना आगे निकल चुका है। मोबाइल फोन इंटरनेट कंप्यूटर आदि के बाद भी हमें वो ज्ञान नहीं मिला जो कि हमारे जीवन को एक नए वातावरण में ढालने के लिए आवश्यक था। कई बच्चों को नौकरियाँ नहीं मिलीं, अच्छे अंक लाने के बाद भी। वहीं दूसरी तरफ़ कुछ ऐसे बच्चे भी थे जिन्हें इंजीनियर नहीं बनना था परंतु माता पिता की खुशी या दबाव के कारण इस क्षेत्र में आना पड़ा।

उनका भविष्य क्या होगा पता नहीं। कहीं ना कहीं हमें ज़रूरत है कि हम अपनी शिक्षा प्रणाली में बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए उचित रूप से सुधार करें। यदि हमें कॉलेज में ही उन सोफ्टवेयरस की शिक्षा दी जाती जो कि हमारी इंजीनियरिंग ब्रांच का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जैसे कि ऑटो कैड,स्काडा,पी.एल.सी, माइक्रो स्टेशन आदि, तो नौकरियाँ पाना तथा नौकरी करना दोनों ही काम हमारे लिए सरल हो जाते।

ऐसी महत्वपूर्ण चीज़ों को सीखने के लिए हमें अलग अलग कोचिंग क्लास में जाकर भारी फ़ीस व समय दोनों लगाने पड़ते हैं जबकि यही चीज़ें हम कॉलेज में ही सीख सकते थे। इसलिए केवल उतना ज्ञान ही काफी नहीं है जो कि हमने किताबों में लिख दिया और बच्चों को उसे याद करने के लिए स्कूल कॉलेज में भेज दिया, बल्कि समय के अनुसार उसे बदलना और सुधारना भी अति आवश्यक है। तथा हर कोई बच्चा इंजीनियर या डॉक्टर नहीं बन सकता, हर बच्चे में एक अलग गुण होता है, बस ज़रूरत है तो उसे समझने और निखारने की। भविष्य किसी ने नहीं देखा परंतु एक अच्छे भविष्य की कल्पना एक व्यवस्थित वर्तमान से ही शुरू होती है।

~ लोमशा

 
आज की दुनिया में एक सफल इंसान वही है जो अपने व्यवसाय और निजी जीवन में संतुलन बनाकर रखे। परंतु ऐसा कम लोग ही कर पाते हैं। लोग अपने व्यवसायिक जीवन में इतना खो जाते हैं कि परिवार को समय नहीं दे पाते। इसका एक कारण ये है कि जब वे कालेज में होते हैं तो उन्हें आने वाले समय से उतना परिचित नहीं कराया जाता जितना होना चाहिए। केवल किताबी ज्ञान उन्हें वास्तविक स्थिति के लिए तैयार नहीं कर पाता।

आजकल की शिक्षा प्रणाली में  परिवर्तन की बहुत आवश्यकता है। बच्चों को प्रैक्टिकल ज्ञान देने में बढ़ोतरी की काफी जरूरत है। किताबी ज्ञान केवल हमें विषय से रूबरू कराता है परंतु असल में हो क्या रहा है और कैसे हो रहा है ये उस कार्य को करने से ही पता चलता है। इसलिए कालेज में समय-समय पर वर्कशॉप आयोजित होते रहने चाहिए। व्यवसाय में जाकर एक इन्सान को किन परिस्थितियों का सामना करना होगा इसकी तैयारी कालेज में ही हो जानी चाहिए।

~नीरज सिंह

 

जब हम कॉलेज में होते हैं तो सिर्फ हमें यही सोचना होता है कि बस हमारे मार्क्स अच्छे आ जाएं और किसी अच्छी कंपनी में जॉब मिल जाए तथा जल्दी-जल्दी हमारी सैलरी भी बढ़ती रहें और हमारी पोस्ट भी। पर हम कभी यह नहीं सोच पाते कि जब हम कॉलेज लाइफ से जॉब लाइफ में जाएंगे तो हमें किन किन बदलावों का परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है और ना ही हमारा कॉलेज हमें कॉलेज लाइफ से जॉब लाइफ में जाने के लिए तैयार करता है।

हम जब कॉलेज में होते हैं तो अगर हमें कोई विषय समझ नहीं आता तो हम एक अच्छे विद्यार्थी की तरह अपने शिक्षकों से विषय जाकर समझ लेते हैं पर इसके विपरीत जब हम जॉब में होते हैं और हमें कुछ समझ नहीं आता तो हम यहां एक अच्छे कार्यकर्ता के रूप में बहुत से जाकर नहीं समझ सकते क्योंकि यहां यह साबित होगा कि हम उस कंपनी के ही लायक नहीं है। जब हम कॉलेज में होते हैं तब हम दोस्तों के साथ शिक्षकों के साथ बेझिझक अच्छे से वह सामान्य बर्ताव करते हैं इसके विपरीत जब हम जॉब लाइफ में आते हैं तो हमारे साथ काम करने वाले सहकर्मी और ज्यादातर ऐसे सहकर्मी जो वरिष्ठ होते हैं तो हमारा उनसे सामान्य बर्ताव नहीं हो पाता है। शुरुआत में तो काफी ज्यादा झिझक रहती है क्योंकि शुरुआत में हम लोग नए कार्यकर्ता होते हैं उनके यहां तो वह लोग हमारा काफी ज्यादा निरीक्षण करते हैं इसलिए हमें जरूरत है कि हम बच्चों को कॉलेज से ही जॉब लाइफ के लिए तैयारी करवाएं ताकि उन्हें कॉलेज से जॉब में जाने के बाद ऐसी परेशानियों का सामना ना करना पड़े।

~शालिनी मिश्रा

 
तो देखा आपने की युवा इंजीनियरों की कुछ समस्याए है। क्या कीया जाए उससे पहले मैं अपना अनुभव कहना चाहुंगा।
 

१९९९ में डीप्लोमा फेब्रीकेशन टेक्नोलोजीमें दाखिला लिया तब उस प्रोग्राम को पूरा रिडिफाइन किया था। (HOD जी.डी.आचार्य एवम सभी प्रोफेसर्सने काफी महेनत की थी) इस डीप्लोमा की खास बात थी की लास्ट सेमेस्टर से पहले बच्चों को ६ – ६ महीने की (पूरा १ साल) दो कंपनी में ट्रेनींग होती थी। तो इस लिए व्यवसायिक जिवन में प्रवेश करने  से पहले हम पूरे तैयार हो जाते थे। मुजे तब भी ये लगा की कोलेज के पास इतने सारे मेन्युफेक्चरींग ड्रोइंग्स थे की वो कैसे पढे जाते हैं उनकी शिक्षा देते तो उन्हें कैसे तैयार करे जाते वो हम आसानी से समज पाते।

 
ठीक वैसा ही मैने डीग्री प्रोडक्शन इंजीनियरींग करते वक्त भी पाया। (HOD मंगल भट्ट एवम सभी प्रोफेसर्सने काफी महेनत कर नया करीक्युलम बनाया) यहां भी हमे ३ महीने की ट्रेनिंग लेनी थी जो कारगर साबीत हुइ। पर बात वहीं पे अटकी। जो चल रहा है इंडस्ट्री में वो तो हमें पता ही नहीं।
 
अब आते हैं सोल्युशन पर। तो सोल्युशन ये है की या तो कॉलेज अपने करीक्युलम में लगातार इम्प्रुवमेन्ट लाये (प्रेक्टीकल तौर पे) या फिर इंजीनियरिंग कम्प्लीट करने से पहले स्टुडन्ट को बाहर से ये ज्ञान लेना है ।
 

१ – सोफ्टवेर / हार्डवेर साइड डेवेलोप हो। कम्प्युटर का भी एड्वान्स लेवल नॉलेज होना बहुत ही जरूरी है। हर स्ट्रीम के जरूरी सोफ्टवेर के लेटेस्ट वर्जन का अनुभव छात्रों को मिले। 

२ – एक फूट में कितने मिलि मीटर, सेन्टी ंमीटर और इंच होते है ये अगर फाइनल यर स्टुडन्ट को मालुम  नहीं तो फिर उसे शिकायत करने का हक्क नहीं की उसे नौकरी नहीं मिल रही। ये सिर्फ एक उदाहरण है। बेझीक नॉलेज होना बहुत ही आवश्यक है जो मुझे लगता है बहुत ही कम छात्रों के पास है (शायद वो ही गंभीर है और उतने हीं चूने जाते हैं)।

३ – कॉलेज के बाहर ही रिआलीटी है वो समजने की और समजाने की जरूरत है। रंग दे बसंती का डीजे (आमिर खान) याद है न? “गुल्ल्बो..कॉलेज के गेट के इस तरफ हम जिंदगी को नचाते है.. डीम लक लक दे डीम लक लक.. और गेट के उस तरफ जिंदगी हम को नचाती है.. डीम लक लक दे डीम लक लक…।” 

४ – कोन्फीडन्ट होना अच्छी बात है पर ओवर कोन्फीडन्स और एटीट्युड आप को जोखीम में डाल सकते है! और इस में झहर घोल सकता है आपका प्रोपर कम्युनिकेशन का अभाव। अगर आप अच्छे से अपने आप को, अपनी नॉलेज को एक्स्प्रेस नहीं कर पाते तो सिलेक्शन होना या फिर प्रमोट होना मुश्किल है।
५ – सेलरी से ज्यादा ध्यान काम पर और अपने चोइस की फिल्ड पर दे। मुजे मेन्युफेक्चरींग पसंद है पर डीझाइन (इपीसी) आज कल ज्यादा सेलरी दे रही है तो मैं उसमे चला जाता / चली जाती हूं – ये सोच लंबे केरीयर ग्राफ के लिए उचित नहीं है। शुरु के दो साल सिर्फ आप सिखने में बिताए; ना की सेलरी गिनने में। बाबा रणछोड दास चांचड उर्फ रेन्चोने कहा था की “दोस्त, एक्सलंस के पीछे भागो, सक्सेस जख मार के पीछे आएगी!”

अब विश्राम… कुछ और पोइंट्स बाद में। अगर कोइ कॉलेज के प्रोफेसर्स इस आर्टीकल को पढ रहे है तो गुजारीश है की छात्रों को प्रेक्टीकल ज्ञान बांटीए, ज्यादा से ज्यादा वर्कशोप्स और छोटी ही सही पर ट्रेनींग करवाइए।

और फाइनल और प्रिफाइनल यर्स स्टुडंट्स एवम न्यु जोइनीझ, आप बेझीक्स पर ध्यान दिजीए। कुछ पैसे नये कोर्सीस सिखने में भी लगाइए, ये भी आप का एक इन्वेस्टमेंट है। (खुद का एक्सपिरीयंस है!)

ओल ध बेस्ट ! और हां “आल इज वेल” 🙂  हंमेशा याद रखीएगा!!!

~ गोपाल खेताणी

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