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एक_अधूरा_खत – लघु कथा – पल्लव_श्रीवास्तव

जून की भरी दोपहरी उपर से सनी महाराज का दिन अपने भौकाली विचारो मे खोया हुआ सोचे जा रहा था ना जाने क्या की तभी भुतकाल के गर्भ से एक हादसा प्रकट होने को था। 
तभी अचानक वार्तालाप यन्त्र पे एक सन्देश प्रकट हुआ ओर वो सन्देश हमारे दूर के रिश्तेदार का निकला। सन्देश पढ के मानो जून का माह फरवरी मे बदल गया जलती धुप की जगह बर्फ की चादर बीछाई हो।
ऐसा प्रतीत हुआ की मानो सपना  तो नही एक बार खुद चुटी काटने के बाद यकिन हुआ की हकिकत है। 
चार साल पहले चार दिन की मुलाकात मे जिसे दिल दे बैठे थे ओर जिसने भाव खाने मे कोई कमी नही छोड़ी थी। वो हमे तलाश रही थी हमारे पुकार नाम से ये सन्देश पढ़ के दिल जोरो से धडक रहा था अपने भावनाओ को समेटते हुये । पुरुषार्थ रोकने का प्रयास कर रहा था ओर दिल उसको आरक्षण देने का ।
एक अधुरा खत मानो कितने सपनों को फिर से जिंदा कर गया।
–पल्लव_श्रीवास्तव
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