sahityadhara

आज की माइक्रोफिक्शन

कबाब में हड्डी

शांत पानी में टकटकी लगाये वो देख रहा था। वो भी पानी से उसको ललचा रही थी। आंखो आंखो में प्यार हो गया। वो हल्के से मुस्कुराया तभी अचानक…”छपाक”… मेंढक उछल के पानी में गीरा और वो चली गई। उसे इतना गुस्सा आया की मेंढक को मार ही डाले मगर जब नज़र बाजुओ पर गइ तो गुस्सा भाप बन के आंसुओ को सुलगाने लगा था।

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गोपाल खेताणी

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